पतरातू(रामगढ़)। जिला के पतरातू और पिठोरिया घाटी वास्तव में सैलानियों को कश्मीर की याद दिलाती है। तीन तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ पतरातू डैम और चारों ओर जंगल और पहाड़ियों की गोद में बसा पलानी गांव का वाटरफॉल सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। सैलानियों के लिए पतरातू डैम, उसके परिसर और लेक रिजॉर्ट इस वर्ष माह नवंबर में भी झर झर पानी गिर रहा है। अन्यथा माह नवंबर पहुंचते पहुंचते यह झरना सूखने लगता था। सैलानियों को यह झरना खूब भाने लगा है। इसकी खूबसूरती को निहारने के लिए सैलानी प्रतिदिन यहां पहुंचते रहते हैं। यह वाटर फॉल अब सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। साथ ही इसके इर्द-गिर्द की वादियां उन्हें और भी भा रहा है। चारों ओर जंगल और पहाड़ियों की गोद में पलानी गांव का यह वाटरफॉल अपनी खूबसूरती को छुपा नहीं पाती है। इसकी खूबसूरती को निहारने के लिए प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में सैलानी यहां पहुंच रहे हैं। जबकि छुट्टी के दिन यहां पर सैकड़ों पर्यटक पहुंचते हैं।साथ ही यहां पहुंच कर सैलानी घंटों इसकी खूबसूरती को निहारते रहते हैं। साथ ही फोटो और सेल्फी खींचवाने से मन को मना नहीं कर पाते। वाटरफॉल से गिरते ठंडे पानी में नहाने और आनंद उठाने से बाज नहीं आते। इस दृश्य को देखने के लिए सिर्फ पतरातू क्षेत्र से ही नहीं बल्कि रांची, रामगढ़ आदि से भी पर्यटक पहुंचते ही रहते हैं। दूसरी ओर इको टूरिज्म केंद्र का सपना देखने वालों का सपना टूटते नजर आ रहा है। क्योंकि सरकार की ओर से जिस तरह से यहां पर इको टूरिज्म केंद्र का निर्माण के लिए घोषणा की गई थी। यह नहीं बन पाया है। दूसरी ओर पलानी झरना का सुंदरीकरण का कार्य हुए दो वर्ष से अधिक हो चुका है। सरकार की ओर से किए गए सुंदरीकरण का कार्य मरम्मत के अभाव में अब जर्जर होने लगा है। यहां पर बनाए गए नाली टूट गए हैं। सैलानियों के लिए बनाए गए शेड जर्जर हो चुके हैं। स्थानीय लोगों की ओर से बनाया गया झरना के नीचे जाने वाला सीढ़ी भी संकीर्ण है। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया है। हालांकि पलानी झरना से लगभग 10 से 15 स्थानीय ग्रामीणों का रोजगार मिल गया है। यहां पर सैलानियों के आने से ठेला खोमचा वालों को रोजगार मिल गया है।