- भाजपा ने एक आदिवासी मुख्यमंत्री की छवि बिगाड़ने और नफरत फ़ैलाने के लिए विज्ञापन पर करोड़ों रुपये फूंके : झामुमो
रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता विनोद कुमार पांडे ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि देश के कई शोध संस्थानों के द्वारा 6 नवम्बर को जारी रिपोर्ट में राजनीति का हैरान करने वाले चेहरे को बेनकाब किया है। जांच रिपोर्ट में तथ्यों के माध्यम से बताया गया है कि झारखंड चुनाव से पहले नफरत की राजनीति को हवा देने के लिए सोशल मीडिया पर झूठ व साम्प्रदायिकता फैलाने और आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अमानवीय जैसा दर्शाने के लिए भाजपा छाया अकाउंट (शैडो एकाउंट्स) बनाकर करोड़ों खर्च कर रही है। सबसे बड़ी हैरानी की बात है कि संसाधनों से लैस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव आयोग खामोश है। जबकि सर्वोच्च न्यायलय का आदेश है कि सोशल मीडिया के प्रचार पर भी अचार संहिता और चुनावी नियम लागू होते हैं।
छाया अकाउंट के माध्यम से हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ सांप्रदायिक व विभाजनकारी सामग्री (कंटेंट) का युद्ध स्तर पर प्रसार और आदिवासी मुख्यमंत्री को अपमानित करने वाले पोस्ट डाले जा रहे हैं।
भाजपा के ऊपर से नीचे तक के नेताओं के भाषणों पर भी गौर करें तो यह समाज को तोड़ने के लिए सांप्रदायिक जहर से भरा हुआ होता है। सार्वजनिक मंच पर बड़ी संख्या में लोगों के बीच भाजपा नेताओं के नफरतें बोल और अब सोशल मीडिया पर भी यही घिनौनी हरकतों का सच सामने आने के बावजूद चुनाव आयोग की ओर से कोई भी कदम नहीं उठाया जाना गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आयोग ने भाजपा को सोशल मीडिया पर शैडो पेज का दुरुपयोग कर साम्प्रदायिकता और नफरत फैलाकर धार्मिक ध्रुवीकरण की खुली छूट दे रखी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा भारत निर्वाचन आयोग से उसकी संवैधानिक जिम्मेदारियों और गरिमा को याद दिलाते हुए भाजपा के इस षडयंत्र को रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई की मांग करता है।
प्रमुख नागरिक अधिकार संगठनों के द्वारा की गई जांच में खुलासा हुआ है कि कैसे मेटा प्लेटफॉर्म भारत में राजनीतिक दुष्प्रचार का अड्डा बन गया है, जहां भाजपा ने झारखंड में सिर्फ तीन महीनों में राजनीतिक विज्ञापनों पर 2.25 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। हाल ही में जारी इस रिपोर्ट ने छाया विज्ञापनदाताओं के एक जटिल नेटवर्क का पर्दाफाश किया है, जो चुनावी कानूनों और प्लेटफॉर्म की नीतियों का उल्लंघन करते हुए आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को निशाना बना रहा है।
रिपोर्ट में यह तथ्य सामने लाया गया है कि कैसे मेटा छाया राजनीतिक विज्ञापनों की अनुमति देता है, इससे मुनाफा कमाता है और इसका प्रचार करता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भाजपा के आधिकारिक पेज के अलावा, कई छाया पेजों ने लाखों रुपये खर्च कर भाजपा के नफरती नरेटिव को फैलाया, जिससे मेटा को भारी मुनाफा हुआ। यह रिपोर्ट दलित सॉलिडेरिटी फोरम, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स, इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल और टेक जस्टिस लॉ प्रोजेक्ट द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है।
रिपोर्ट में राजनीतिक विज्ञापनों का एक चौंकाने वाला पैटर्न सामने आया है जहां भाजपा का छाया नेटवर्क लगभग उसके आधिकारिक खर्च की बराबरी करता है। जहां भाजपा के आधिकारिक झारखंड पेज ने 3,080 विज्ञापनों के माध्यम से 97.09 लाख रुपये खर्च किए जिससे 10 करोड़ इंप्रेशन मिले, वहीं शोधकर्ताओं ने भाजपा से जुड़े कम से कम 87 छाया पेज की पहचान की जिन्होंने 81.03 लाख रुपये खर्च किए। इस छाया नेटवर्क ने आधिकारिक भाजपा विज्ञापनों की तुलना में लगभग चौगुना इंप्रेशन हासिल किया, जो संकेत देता है कि मेटा के एल्गोरिथ्म इन अनाधिकारिक चैनलों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
रिपोर्ट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की आदिवासी पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता पर उनके रुख को निशाना बनाने वाले एक समन्वित अभियान का दस्तावेजीकरण किया गया है। कथित रूप से राजनीतिक प्रेरित भ्रष्टाचार के आरोपों में सोरेन की गिरफ्तारी के बाद, छाया नेटवर्क ने अपने हमले तेज कर दिए। दीवाली के दौरान कई पेजों पर सींग के साथ सोरेन की अमानवीय छवियों वाले विज्ञापन दिखाई दिए, जो आदिवासी नेतृत्व को कमजोर करने के व्यवस्थित प्रयास को दर्शाता है।
रिपोर्ट में सांप्रदायिक रूप से संकलित सामग्री के कई उदाहरण सामने आए। “बदलेगा झारखंड” जैसे छाया पेजों ने, केवल 28,800 इंस्टाग्राम फॉलोअर्स होने के बावजूद, एक महीने में 1 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए 1.4 लाख रुपये खर्च किए। सामग्री में बार-बार मुस्लिम पुरुषों को नकारात्मक रूप से चित्रित किया गया, “लव जिहाद” षड्यंत्र सिद्धांतों को बढ़ावा दिया गया, और झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में झूठी कहानियां फैलाई गईं।
इन छाया खातों पर सांप्रदायिक नफरत भड़काने वाले कई विज्ञापन देखे गए। इन विज्ञापनों में बार-बार हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे-फॉर्मेट के एनिमेटेड वीडियो पाए गए, जिनमें सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी सामग्री थी। इनमें हरे कुर्ते और सिर पर टोपी पहने पुरुषों को तलवारें लिए एक नारंगी वस्त्र पहने व्यक्ति का पीछा करते हुए दिखाया गया है, जिसके माथे पर पारंपरिक तिलक है। बाद में उस व्यक्ति के साथ इसी तरह कपड़े पहने अन्य पुरुष जुड़ते हैं ताकि तलवारधारी मुस्लिम पुरुषों के समूह का सामना कर सकें।
ऐसे विज्ञापन चुनावी कानूनों का भी उल्लंघन करते हैं, जिसमें चुनाव आयोग राजनीतिक विज्ञापनों के प्रमाणन पर रोक लगाता है, जो किसी धर्म या समुदाय पर हमला करते हैं या हिंसा को उकसाते हैं।
रिपोर्ट में उजागर किया गया है कि अकेले गुगल पर, भाजपा ने इस अवधि के दौरान 71.82 लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च किया, जिससे उनका कुल आधिकारिक डिजिटल विज्ञापन खर्च 2.49 करोड़ रुपये हो गया।
भाजपा के भारी खर्च के विपरीत, कांग्रेस झारखंड और झामुमो सहित अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों ने डिजिटल विज्ञापन में न्यूनतम उपस्थिति दिखाई। यह डिजिटल असमानता राजनीतिक संचार में बढ़ती असंतुलन को दर्शाती है, जहां एक पार्टी आधिकारिक और छाया चैनलों दोनों के माध्यम से हावी है।
चुनावी कानूनों की अनदेखी
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि ये छाया विज्ञापन कई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और भारत निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं। चुनावों के दौरान सभी राजनीतिक विज्ञापनों को चुनाव आयोग के द्वारा पूर्व-प्रमाणित किया जाना चाहिए, जिसमें सोशल मीडिया विज्ञापन भी शामिल हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव विनोद कुमार पांडे के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि भाजपा के तमाम षडयंत्रों और पीठ पीछे से छुप कर वार करने वाली कहावत को अपने आचरण से चरितार्थ किया है। भाजपा में अगर हिम्मत है तो सामने से लड़ो – कायर अंग्रेजों की तरह लगातार पीछे से वार क्यों ? कभी एड़ी, कभी सीबीआई, कभी कोई एजेंसी – कभी कोई और। अब अरबों रुपये खर्च कर दिए मेरी छवि बिगाड़ने में। अजब हालात है। 11 साल से केंद्र में भाजपा की सरकार है, 5 साल झारखंड में भी रह चुकी है – ख़ुद को डबल इंजन सरकार बोलती रही फिर रघुबर सरकार के पांच साल में सिर्फ़ हाथी क्यों उड़ा ? क्यों पांच सालों में 13000 स्कूल बंद किए ? क्यों पांच साल में 11 लाख – राशन कार्ड रद्द किए ? क्यों पांच साल में 1 जेपीएससी परीक्षा नहीं हुई ? क्यों पांच साल में वृद्धा/विधवा पेंशन नहीं बढ़ा और ना मिला ? क्यों पांच साल में राज्य में भूख से सैंकड़ों मौतें हुई ? ” राज्य की जनता भाजपा से पहले इन सवालों का जवाब मांग रही है।