रांचीl झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक बड़ा झटका लगा हैl झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू और विधायक सीता सोरेन ने पार्टी के भीतर अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। यह निर्णय झारखंड में अपने गढ़ को सुरक्षित रखने में पार्टी की हालिया असफलताओं के मद्देनजर आया है। सीता सोरेन ने कहा कि”मैंने 14 साल तक पार्टी की सेवा की और 14 साल में मुझे जो सम्मान मिलना चाहिए था वो मुझे आज तक नहीं मिला। जिसके कारण मुझे यह बड़ा फैसला लेना पड़ा। मैंने भी मोदी जी के परिवार का सदस्य बनने का फैसला किया है।”
झामुमो के भीतर एक प्रमुख नेता सीता सोरेन राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक मुखर व्यक्ति रही हैं। उनके इस्तीफे से पार्टी में खलबली मच गई हैl जिससे पार्टी की भविष्य की रणनीतियों और नेतृत्व पर सवाल खड़े हो गए हैं।
झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी झामुमो को हाल के दिनों में बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी का गढ़ जिसे कभी अभेद्य माना जाता थाl बदलती राजनीतिक गतिशीलता के सामने कमजोर होने के संकेत दे रहा है।
सीता सोरेन के इस्तीफे के साथ झामुमो को अब अपनी खोई जमीन वापस पाने और राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपने दृष्टिकोण और रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस्तीफे से पार्टी के भीतर आंतरिक दरार और रणनीतिक दिशाओं को लेकर भी बहस छिड़ गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का सुझाव है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के हालिया संघर्षों का संभावित रूप से राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। जैसे-जैसे पार्टी अनिश्चितता के इस दौर से गुजर रही हैl सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह कैसे फिर से संगठित होगी और आगामी राजनीतिक चुनौतियों से पहले खुद को किस स्थिति में रखेगी।
सीता सोरेन के इस्तीफे ने झामुमो के इतिहास में एक नया अध्याय खोल दिया हैlजो आत्मनिरीक्षण और परिवर्तन के दौर का संकेत है। यह देखना बाकी है कि पार्टी नेतृत्व इन घटनाक्रमों पर कैसे प्रतिक्रिया देगा और झामुमो को नए सिरे से उद्देश्य और दिशा की ओर ले जाएगा।