स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई में बलिदान देने वाले महान संथाल विद्रोहियों को श्रद्धा सुमन
रांची। झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के वरिष्ठ नेताओ ने हुल दिवस के मौके पर मोराबादी में भारतीय इतिहास में स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई में बलिदान देने वाले महान संथाल विद्रोह के प्रनेता को श्रद्धांजलि अर्पित किया।
कांग्रेस नेता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोर नाथ शाहदेव, फिरोज रिजवी मुन्ना,विनीता नायक,अर्चना कुमारी,बोकारो अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्षा मुसर्रत जबीं,लीला देवी,बसंती देवी,सोनी नायक,धनबाद जिला कांग्रेस की उषा पासवान , प्रदेश युवक कांग्रेस की उपाध्यक्ष सुश्री निशा भगत, कुलदीप रवि के साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने आज हुल क्रांति दिवस के मौके पर मोराबादी सिद्धू कान्हू पार्क पहुंचकर भारतीय इतिहास में स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई में बलिदान देने वाले महान संथाल विद्रोह के प्रणेता सिद्धू कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया एवं दो मिनट का मौन रखकर सिद्धू कान्हू,चांद भैरों,फूलो झानो को श्रद्धांजलि दी एवं नारेबाजी भी की।
इस मौके पर संगठन सशक्तिकरण अभियान के संयोजक आलोक कुमार दूबे ने कहा आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो के खिलाफ आदिवासियों की संघर्ष गाथा और बलिदान को याद करने का आज खास दिन है। 30 जून 1855 को सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में साहिबगंज जिला के भोगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था और नारा दिया गया था “करो या मरो अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो”। 50 हजार से अधिक लोगों ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन किया इसमें 20 हजार लोगों ने अपनी शहादत दी थी और दोनों भाइयों को फांसी की सजा दी गई थी जो देश के इतिहास में दर्ज है और उन्हीं की याद में संथाल हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है।
वरीष्ठ कांग्रेस नेता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा हालांकि आजादी की पहली लड़ाई सन 1857 में मानी जाती है लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने 1855 में ही विद्रोह का झंडा बुलंद किया गया था। अंग्रेजों के अत्याचार एवं साहूकारों के प्रकोप से उपजे असंतोष को आन्दोलन में बदलकर चारों भाइयों सिद्धू कान्हू, चांद भैरव चारों भाइयों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे और हंसते हंसते देश के लिए अपनी जान दे दी।
कांग्रेस नेत्री विनीता नायक व अर्चना कुमारी ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा संथाल विद्रोह के भय से अंग्रेज और उनकी पुलिस घबड़ाती थी। क्योंकि जिस दरोगा को गिरफ्तार करने के लिए भेजा गया था। उसका सर कलम कर दिया गया था। लेकिन बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए तो वहीं दूसरी तरफ सिद्धू कान्हू को फांसी पर लटका दिया गया था।