आजादी की पहली लड़ाई थी हूल क्रांति : अवधेश सिंह
हजारीबाग। जिला कांग्रेस कार्यालय कृष्ण बल्लभ आश्रम में विधिवत अमर शहीद सिद्धो और कान्हू के चित्र पर माल्यार्पण कर 167 वीं हूल क्रांति दिवस मनाई गई । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिला अध्यक्ष अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि जिस दिन झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाया यानि विद्रोह किया था, उस दिन से हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है । इस युद्ध में करीब बीस हजार आदिवासियों ने अपने प्राणों की आहूती दे दी थी । हालांकि आजादी की पहली लड़ाई तो सन 1957 में मानी जाती है लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने 1855 में ही विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया था । तीस जून 1855 को सिद्धो और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहेबगंज जिला के भगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था । इस मौके पर सिद्धो ने नारा दिया था, करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो । बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए और छब्बीस जूलाई को सिद्धो और कान्हू को भगनाडीह गांव में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फांसी की सजा दे दी गई । इस तरह सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव चारों भाईयों भारतीय इतिहास में सदा के लिए अमर शहीद हो गए ।
मौके पर कार्यकारिणी के सदस्य शशि मोहन सिंह, विरेन्द्र कुमार सिंह, उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता निसार खान कोषाध्यक्ष सुनिल कुमार अग्रवाल उपाध्यक्ष अजय कुमार गुप्ता, नरेश कुमार गुप्ता, मंसुर आलम महासचिव राजू चौरसिया, रीतलाल मंडल, दिलदार अंसारी, डाॅ. दीपक बंधू, उपेन्द्र कुशवाहा, सुनिल कुमार ओझा, रवीन्द्र प्रताप सिंह, संजय कुमार तिवारी, विजय कुमार सिंह, साजिद हुसैन, प्रखंड अध्यक्षों में अजीत कुमार सिंह, अब्बास अंसारी, राम जन्म राय, मो. नौशाद सचिव सैयद अशरफ अली, अनवर हुसैन, मो. कलाम, मो. कयूम, इल्फाज अंसारी आदि उपस्थित थे ।