रांची। केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा भारतीय सेना की रेग्युलर भर्ती रोककर चार साल के ठेके पर फौज की भर्ती करना देश के युवाओं के साथ धोखा है। यह भारतीय सेना की गरिमा, परम्परा, जुडाव की भावना व अनुशासन की परिपाटी के साथ खिलवाड भी है।प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता डॉ राकेश किरण महतो ने कहा कि केन्द्र सरकार ने देश में ढाई लाख से भी अधिक पद खाली रहने के बावजूद पिछले दो साल से सेनाओं की भर्ती रोक रखी है। हर साल दो करोड लोगों को रोजगार देने का वादा कर केन्द्र में आई यह सरकार के समक्ष जब सेना में नौकरी देने की बारी आई तो वह ऐसी योजना लेकर आ गई जिसमें बहाल हुए सैनिकों का भविष्य ही अंधकार में होगा। दरअसल निजीकरण और पूंजीवाद की राह में अग्रसर यह सरकार देश में गुलाम एवं लाचार बेरोगारों की फौज खड़ा करना चाहती है।
डॉ महतो ने बताया कि रक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि 04 साल की कॉन्ट्रैक्ट भर्ती की यह योजना देश की सुरक्षा के लिए उचित संदेश नहीं है। यह निर्णय कहीं न कहीं तीनों सेनाओं की कार्यक्षमता, निपुणता, योग्यता, प्रभावशीलता व सामर्थ्य पर समझौता करने वाला है। इससे सेना की कार्यशील क्षमता घटेगी। हमारे देश की सीमाओं के जो हालात हैं उसमें यह जरूरी है कि हमारे सेना में ऐसे जवान हांे जो युवा, सुप्रशिक्षित, प्रेरित, संतुष्ट और अपने भविष्य के प्रति निश्चिंत हों। परन्तु इस योजना के प्रावधान इसके ठीक विपरित है। सैनिकों को चार वर्ष की सेवा के बाद अनिवार्य सेवानिवृति हो जायेगी वो भी बगैर पेंशन के। ऐसे युवा सैनिक जब फिर से समाज में लौटेंगे तो उनके समक्ष फिर से रोजगार प्राप्त कर परिवार भरण-पोषण के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पडेगा। यह देश के युवा सैनिकों के साथ अन्याय है।
डॉ महतो ने कहा कि इस भर्ती योजना से पूरे देश के युवा आक्रोश में है और वे इसका उग्र विरोध कर रहे हैं। यह योजना विवादित है और इसमें कई तरह के खतरे भी हैं। इसलिए इसे तत्काल स्थगित कर देना चाहिए तथा केन्द्र सरकार को कार्यरत और सेवानिवृत सैन्य अधिकारियों से सलाह मशविरा लेना चाहिए। इस योजना को लाने में जल्दबाजी की गई है, इसी वजह से इसमें कई तरह की खामियां है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता डॉ राकेश किरण महतो ने कहा कि देश की मोदी सरकार महंगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सहित अन्य गंभीर विषयों पर पूरी तरह से नाकाम है। इनकी नीतियां पूरी तरह से विफल साबित हुई हैं। इनके द्वारा लाई गई अग्निपथ योजना को देश के नौजवानों ने, कृषि कानूनों को किसानों ने, जीएसटी को व्यापारियों ने तथा नोटंबदी के निर्णय को अर्थशास्त्रियों ने ही नकार दिया है। सरकार और उनके समर्थक अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे है जबकि देश की जनता मोदी शासन में बेहद परेशान है और दर्द से कराह रही है।