वेदी शिखर शुद्धि एवं वेदी संस्कार हेतु घट यात्रा निकाला गया
रामगढ़। श्री 1008 जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्राण प्रतिष्ठा मोहत्सव के तीसरे दिन मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज के सानिध्य मे, प्रतिष्ठाचार्य अभय भैया एवेम अशोक भैया के निर्देशन मे गर्व कल्याणक का उत्तर रूप का पूजा अर्चना किया गया।
सुबहे 5:45. श्रीजी का जलाभिषेक एवम शांतिधारा,सुबह 8:00बजे. मुनि श्री द्वारा मंगल देशना,सुबह 8:45 बजे. इन्द्र इन्द्राणी द्वारा नवीन मंदिर मे वेदी, शिखर शुद्धि, कलश जल के द्वारा किया गया।दोपहर 03.30बजे भगवान की माता का गोद भराई, संध्या 06 बजे, संखा समाधान संध्या 07.15 बजे, महाआरती एवेम शास्त्र प्रवचन हुआ। इसके बाद रात्रि 08बजे से भगवान के पिता महाराजा नाभि राय का राज दरबार, स्वपन फलादेश, गीत नित्या, तत्वा चर्चा,56 कुमारी के द्वारा गीत और नृत्य किया गया।
इस दौरान बताया गया कि भगवान के गर्भ में आने से छह माह पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त 15 मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती है। यह भगवान के पूर्व अर्जित कर्मों का शुभ परिणाम हैं। दिक्ककुमारी देवियाॅं माता की परिचर्या व गर्भशोधन करती हैं। यह भी पुण्य योग है। गर्भ वाले दिन से पूर्व रात्रि को माता को 16 उत्तम स्वप्न दिखते हैं। जिन पर भगवान का अवतरण मानकर माता-पिता प्रसन्न होते हैं।
सबसे पहले मंत्रोच्चार पूर्वक उस स्थान को जल से शुद्ध किया जाएगा। यह जल घटयात्रापूर्वक शुद्धि स्थल तक लाया जाएगा।सोलह स्वप्नों का अवलोकन करती माता तीर्थंकर की माता त्रिशला के सोलह स्वप्न एवं फल शुद्धि के पश्चात उचित स्थल पर घटस्थापना होंगी। उसके पश्चात जैन-ध्वज को लहराया जाएगा। जैन ध्वज, जैन दर्शन, ज्ञान और चरित्र की विजय पताका है। यह तीर्थंकरों की विजय पताका नहीं है। किसी राजा या राष्ट्र् की विजय पताका नहीं है। यह चिंतन, मनन, त्याग, तपस्या व अंतिम सत्य को पालने वाले मोक्षगामियों की विजय पताका है। इस भाव का ग्रहण करना आवश्यक है। दिग्दिगंत में लहराने वाला यह ध्वज प्रतीक है। उस संदेश का जो तीर्थंकरों, आचार्यों, मुनियों के चिंतन-मनन व आचरण से परिष्कृत है।
पंच कल्याणक में गर्भ कल्याणक के साथ संस्कारों की चर्चा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। व्यक्ति के जीवन की संपूर्ण शुभ और अशुभवृत्ति उसके संस्कारों के अधीन है। जिनमें से कुछ वह पूर्व भव से अपने साथ लाता है व कुछ इसी भव में संगति व शिक्षा आदि के प्रीााव से उत्पन्न करता है। इसीलिए गर्भ में आने के पूर्व से ही बालक में विशुद्ध संस्कार उत्पन्न करने के लिए विधान बताया गया है। जिनसे बालक के संस्कार उत्तरोत्तर विशुद्ध होते हुए एक दिन वह निर्वाण का भाजन हो जाता है, जिनेन्द्रवर्णी पंचास्तिकाय, सिद्धिविनिश्यच, मूलाचार, धवला, महापुराण आदि ग्रंथों में संस्कारों पर बहुत कुछ लिखा गया है। पंचकल्याणक के शुभ संयोग से यदि संस्कारों के बारे में अधिक गहराई से विचार करेंगे तो उन्नत जीवन का हमारा नजरिया अधिक तर्किक हो जाएगा।
पंचकल्याणक प्राण प्रतिष्ठा मोहत्सव मे इन्द्र इन्द्राणी बने का शोभाग्य सो धर्म इंद्र इन्द्राणी-दिलीप -सुनील आ चूड़ीवाल,भगवान के माता पिता – रमेश सरला सेठी,कुबेर राजेंद्र -प्रिया पाटनी को मिला।
कार्यक्रम में डॉ सांत्वना सारण, लेफ्टिनेंट कर्नल महेश जैन, अनमोल सिंह, प्रदीप सिंह, बजरंग लाल अग्रवाल, नानूराम गोयल, शंकर अग्रवाल, महेश मारवाह, डॉ आर्य, एडवोकेट प्रमोद सिंह, डॉ उर्मिला सिंह, पंकज जैन, सरदार नरेंद्र चमन, कमल शर्मा, राजीव बगड़िया, सरदार जानू कालरा, जैन समाज से रतन जैन, डॉ शरद जैन,रमेश सेठी, मानिक जैन, ललित जैन,राकेश जैन, सुनील सेठी, गौरव अजमेरा, अंकित जैन, विवेक अजमेरा, अशोक सेठी, अरविन्द सेठी, महाबीर गंगवाल, सुशील चूड़ीवाल, अशोक चूड़ीवाल, विकास जैन, राजेश चूड़ीवाल, राजू सेठी, निशांत सेठी, अमित काला, अनिल बागरा, टीकमचंद, संजय सेठी आदि लोग थे।