झारखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस

झारखंड में भाजपा विधानसभा चुनाव हार कर सत्ता से बेदखल हो चुकी और तीन उपचुनाव हार कर हताश: कांग्रेस

रांचीझारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता आलोक कुमार दूबे और डॉ राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि भाजपा मुख्य चुनाव हारकर सत्ता से बेदखल हो चुकी है।तीन उपचुनाव भी हारकर हताश हो गई है तो अब अलोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल कर एक चुनी हुई गठबंधन की सरकार को अस्थिर करना चाह रही है।इसमें भाजपा माइंस लीज मामले को एक हथियार के रुप में इस्तेमाल कर रही है। जिसकी हम कड़े शब्दों में भर्तसना करते हैं।इन्होंने कहा राज्य मे इन दिनों संविधान का अनुच्छेद 192 काफी चर्चा मे है और सुर्खियां भी बटोर रहा है। ऐसा इसलिए कि राज्यपाल ने संविधान के इसी अनुच्छेद से प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन माइनिंग लीज प्रकरण मामले मे चुनाव आयोग से मंतव्य मांगने की कार्रवाई की है।
कांग्रेस नेता आलोक कुमार दूबे ने कहा कि इस संबंध संविधान के अनुच्छेद को हूबहू उद्धृत करना प्रासंगिक होगा। खण्ड (1) में यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 191 के खण्ड (1) मे वर्णित किसी निरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नही ,तो यह प्रश्न राज्यपाल को विन्श्चय के लिए निर्देशित किया जायेगा और उसका विन्श्चय अंतिम होगा। इसमें यह साफ है कि अनुच्छेद 192 के प्रावधान अनुच्छेद 191 (1)मे वर्णित निरहर्ता (डिसक्वालीफिकेशन) की पांच स्थितियों से जुड़े हुए हैं । दूसरी यह बात भी स्पष्ट है कि ऐसा मामला राज्यपाल को निर्देशित किया जायेगा। तीसरी बात यह है कि राज्यपाल का विनिश्चय फाइनल होगा।किन किन स्थितियों मे विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य निरहिर्त (डिसक्वालीफाई) होगा उसका उल्लेख अनुच्छेद 191 (1)के पांच बिन्दु मे दिया गया है। जिसमें पहला है यदि वह कोई लाभ का पद धारण करता है। दूसरा यदि वह विकृतचित है और ऐसा सक्षम न्यायालय से घोषित हो। तीसरा यद वह दिवालिया हो गया है । चौथा यदि उसकी नागरिकता प्रश्नों के घेरे मे आ गयी हो। पांचवी स्थिति तब बनती है जब वह संसद द्वारा बनायी गयो किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निर्हित (डिसक्वालीफाई) कर दिया गया जाता है ।
अब इन्हीं पांच स्थितियों में किसी सदस्य की निरहर्ता पर कोई सवाल खड़ा होने पर मामला विन्श्चय के लिए राज्यपाल को निर्देशित करने की बात अनुच्छेद 192 (1)मे कही गयी है। अनुच्छेद 192 (2)कहा गया है कि निरहर्ता के ऐसे किसी प्रश्न पर विन्श्चय करने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा।यहां यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का माइंस लीज मामला अनुच्छेद 191 (1) में परिभाषित पांच स्थितियों के दायरे मे आता है या नही । दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि क्या यह मामला राज्यपाल को निर्देशित है या नही ,जैसा कि अनुच्छेद मे उल्लेख है।और इस तरह के माइंस लीज मामलों मे न्यायालयों के क्या न्याय निर्णय रहे हैं। न्याय निर्णयों से क्या निर्हरता प्रभावी हुई है या नही । क्या माइंस लीज मामले को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने चुनाव हलफनामे में जिक्र किया है या नहीं, इन बातों को देखना होगा।संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों से जन साधारण यह उम्मीद रखते हैं कि वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन मे संविधान की गरिमा को पहली प्राथमिकता देंगे। किसी राजनीतिक दल से झुकाव -लगाव से परे होकर काम करेंगे । परन्तु जब इससे हटकर निर्णय लिये जाने लगेंगे तो लोकतंत्र तो चोटिल होगा ही और हम जानते हैं महामहिम न्याय के पक्षधर हैं और अच्छे इंसान हैं और संविधान के रक्षक भी हैं। यहाँ पर भाजपा की कुत्सित नापाक कोशिशें कभी सफल नहीं होंगी।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ0 राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि अब यदि लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 की बात की जाए, तो इसकी धारा 9ए के तहत माइंस लीज मामला सप्लाई ऑफ गुड्स में नहीं आता। ऐसा फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सीवीके राव बनाम देंतु भास्करण मामले में 5 जजों की खंडपीठ ने 4 मई 1964 को दिया है। यह केश पीपुल्स रिप्रेजेनटेंशन एक्ट के तहत चला था।जिसमें माइंस होल्डर विधायक की विधायकी को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था। अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के फैसले दिये थे। इसमें वर्ष 2001 में करतार सिंह भदाना बनाम हरि सिंह नालवा और वर्ष 2006 में श्रीकांत बनाम बसंत राव का मामला शामिल है। जब मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन ने अपने इलेक्शन एफिडेविट में माइंस लीज अपने नाम पर होने का जिक्र किया है और बताया है कि इसे रिन्यूअल के लिए भेजा गया है, इसे छिपाया नहीं है। बल्कि बकायदा इसका खुलासा किया है। तब कहां से चोरी या अपराध की बात आती है। लेकिन बीजेपी चुनाव तो हार कर सत्ता गंवा चुकी है और तीन बड़े उपचुनाव हाकर हताश हो गयी है, तो अब गैर लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल कर एक चुनी हुई गठबंधन सरकार को डिस्टेबलाईज करना चाह रही है। जबकि हकीकत यही है कि माइंस लीज मामला सप्लाई ऑफ गुड्स कैटेगरी में नहीं आता है और न ही कंट्राक्ठ वर्कर्स में आता है।इसलिए इसमें पीपल्स रिप्रेजेनटेशन एक्ट अपलाई नहीं होता है।
एक प्रश्न के जवाब में आलोक दूबे ने कहा कि राजनीति हो या सामाजिक क्षेत्र हर व्यक्ति को अपने जीवन यापन करने का पूरा अधिकार है।भाजपा के तमाम नेताओं का व्यवसाय है।यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र बड़े कारोबारी हैं तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के भी पशुपालन विभाग से रिश्ते जगजाहिर हैं।