Breaking News

झारखंड मुक्ति मोर्चा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बचाव में उतरी

बचाव में रखी दलीले,सुप्रीम  कोर्ट के केस का दिया हवाला 

हेमंत सोरेन ने कोई अपराध नहीं किया है: झामुमो

रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा अब खुलकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बचाव में उतर चुकी है।झामुमो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया है। झारखण्ड में हेमंत के खान लीज मामले में झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्ट्चार्य और झामुमो विधायक ने साझा प्रेस कांफ्रेंस किया और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा की हेमंत ने कोई अपराध नहीं किया है। उन्होंने कहा की बीजेपी के नेताओ ने एक कॉन्सप्रेसी  के तहत विगत दिनों झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा ली गयी लीज को सेक्शन 1951 के तहत 9A दंडनीय या दोषी अपराधी की तरह पेश किया है।  जबकि भारत की संसद ने जब यह कानून को पारित किया था तो इसमें छह बिन्दुओ को समाहित किया था। जिसमे यह मामला अपराध के श्रेणी में नहीं आता है।  उन्होंने कहा की 1964 से 2006  तक इस तरह के कई मामले सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा के लिए जाते है उस मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है की 9A का मामला किसी भी कॉन्ट्रेक्ट को टच नहीं करता है यह मामला सरकार से कोई कॉन्ट्रेक्ट लेने या सरकार को किसी गुड्स की सप्लाई का सड़के बनाने या मकान बनाने का या सिचाई की कोई योजना लेने को इस कॉन्ट्रक्ट की श्रेणी में माना गया है। 

खनन लीज (mining lease) मामले में हर तकनीकी पहलुओं को देखने की जरूरत : रिटायर्ड जस्टिस अशोक कुमार गांगुली
उन्होंने कहा की 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था खनन पत्ता कोई सप्लाई और गुड्स का व्यवसाय नहीं है ये सरकार द्वारा  किये गए कार्य के निष्पादन के तहत नहीं आता है 1964 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 (A) के तहत माइनिंग लीज का मामला सप्लाई ऑफ गुड्स बिजनेस के तहत नहीं आता. 2001 में करतार सिंह भदाना V/S हरि सिंह नालवा और अन्य और 2006 में श्रीकांत V/S बसंत राव और अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह का निर्णय दिया था।
उन्होंने कहा की 9A के तहत माइनिंग लीज का मामला नहीं आता है  क्युकी मुख्यमंत्री ने पहले ही अपने चुनावी हलाफनामा में इस बात का जिक्र किया है कि उनके नाम से एक माइंस लीज पर है, जिसे उन्होंने रिन्यूअल के लिए भेजी हुई है. ऐसे में तो कोई आपराधिक मामला बनता ही नहीं.  उन्होंने कहा की किसी तरह के कोई निर्णय लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी देखा जाना जरूरी है. साथ ही उन्होंने दिल्ली न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा की  इस मामले में दूसरे पक्ष को वर्डिक्ट रखने यानि  दूसरे पक्ष को अपनी बात रखने का भी मौका दिया जाना चाहिए। इस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा की इस माइंस में लाइट का कनेक्शन नहीं है GST नहीं लिया है और ना ही एक छटाक पत्थर का खनन हुआ है और मुख्यमंत्री ने मर्यादा रखते हुए इस वापस भी कर दिया है। अब जल्द ही पिछली सरकार में किये गए भ्रष्टाचार का खुलसा होगा। ऑर्गनिक फार्मिग ऑथरिटी ऑफ़ झारखण्ड के तहत किसानो को नहीं बल्कि ट्रेनिंग के लिए नेताओ को विदेशो में ले जाया गया है जल्द ही इस भ्रष्टाचार का खुलासा होगा।