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नारी के मन में प्रेम, त्याग, सहनशीलता, सेवा और करुणा के भाव : सुधीर मंगलेश

रामगढ़जिला के दुलमी प्रखंड बीस सूत्री अध्यक्ष सुधीर मंगलेश ने महिला दिवस संदेश भारतीय महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा का गंभीर प्रश्न देश समाज के सभी हितैषियों और शुभचिंतकों के मन मस्तिष्क को लगातार झिंझोड़ रहा है । आखिर ऐसा क्यों न हो । महिला प्रताड़ना की दिनोदिन बढ़ती घटनाओं ने इनको आंतरिक रूप से क्षुब्ध और चिन्तित कर डाला है । इस लिए भी महिला सुरक्षा और सम्मान हमारे लिए एक बहुत बड़ा प्रश्न है । जब हर साल महिला दिवस पर महिलाओं की लैंगिक समानता और संवैधानिक अधिकारो की बात की जाती है । लेकिन उसके बावजूद आज इतने सालों बाद भी धरातल पर इनका खोखलापन दिखाई देता है । तो इस बात को स्वीकार करना आवश्यक हो जाता है कि महिला अधिकारों की बात पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति पुरूषों की सोच में बदलाव लाए बिना संभव नहीं है । आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद मानना छोड़ दे जो जन्म दे वह पीड़ित कैसे हो सकती है । नारी को मांगने की आदत बदलनी होगी , स्वंय के हुनर को तलाशना सीखना होगा । फिर देखों दुनिया कदमों में आ जायेगी । आज भारतीय महिलाओं ने विश्व स्तर पर लगभग सभी क्षेत्रों में खुद को स्थापित किया है । आधी दुनिया यानी भारतीय महिलाओं के विकास के ओर बढ़ते कदम आज पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन चुके हैं । आज महिला दिवस पर हम गर्व के कह सकते हैं कि भारतीय नारियों ने देश – दुनिया के हर क्षेत्र में अपना सम्मानित स्थान बनाया है । इस पुरुष प्रधान समाज में हमें मिलकर यह सोचने की जरूरत है कि क्या महिला वर्ष के सिर्फ एक दिन यानी 8 मार्च महिला दिवस पर ही महिलाओं को हम प्यार सत्कार , सुरक्षा और सम्मान के हकदार क्यों समझते हैं । हमें इस सोच को बदले की जरूरत है । इतनी सारी प्रतिकूलताओं के बावजूद भी एक स्त्री हार नहीं मानती क्योंकि यही उसका विशेष गुण होता है जो उसे सबसे अलग करता है । नारी वो शक्ति है , वो सामर्थ्य है , वो साहस है , वो संबल है … ऐसी माताओं को , ऐसी बहनों को और इस देश के हर पुरूष की शक्ति को प्रणाम , वंदना और अभिनंदन …….. इमाम हाशमी उसने सृजन की शक्ति दी है , ईश्वर की वो कल्पना जिसमें प्रेम , त्याग , सहनशीलता , सेवा और करूणा जैसे भावों से भरा हृदय है । जो शरीर से भले ही कोमल हो लेकिन इरादों से फौलाद । जो अपने जीवन में अनेक किरदारों को सफलतापूर्वक जीती है । वो मां के रूप में पूजनीय है , बहन के रूप में सबसे खूबसूरत दोस्त है , बेटी के रूप में घर की रौनक है , के रूप में घर की लक्ष्मी है और पत्न के रूप में जीवन की हमसफर बच्चों संस्कार …… मातृत्व का बोध … पुरूषों का प्रभुत्व … वो है तो मकान घर बन पाता ….. बच्चों का भविष्य संवर पाता है .. पुरूषों का जीवन संबल पाता है ….. जो गमों की दीवार और दुख को पीकर हर परिस्थति में मुस्कुराती है । वीं सदी यानी महिलाओं की सदी इस में कोई संदेह नहीं है कि हम एक ऐसे दौर ना चाहे जिस नाम से पुकारो नारी तो एक ही है । ईश्वर की वो रचना जिसे संतोषप्रद दिखाई नहीं देती है शैक्षिक और आर्थिक रूप से जब महिलाएं उन्नत होगी तो परिवार और समाज भी उन्नत होगा । इसके लिए पुरुष को स्त्री – विरोधी मानसिकता त्यागनी होगी , और हमे मिलकर हर स्तर पर यह भी प्रयास करना होगा कि महिलाओं को सशक्त बनाया जाय । जरूरत इस बात को समझने की है कि स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिस्पर्धी नहीं मानव सभ्यता के विकास एवं एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता तथा सम्मान का भाव आवश्यक हैं । भारत की अनेकों महिलाओं ने समय समय पर यह सिद्ध किया है कि वह अबला नहीं सबला है । केवल जननी नहीं ज्वाला है । नारी नारायणी है , सबका ख्याल रखते – रखते अक्सर खुद को भूल जाती है । यह उसका जो प्राकृतिक स्वभाव है । उसमें बदलाव की दरकार है ।