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समाज की सेवा के लिए मेरुदंड है रोटरी क्लब : प्रवीण

आमंत्रित आलेख 

23 फरवरी 1905 को पॉल हैरिस के द्वारा शिकागो में अपने तीन मित्रों के सहयोग से समाज सेवा के लिये खड़ी की गई संस्था रोटरी इंटरनेशनल आज पूरे विश्व में हिमालय की तरह अपने कर्तव्य पथ पर अडिग है। यह पंथ निरपेक्ष संगठन  जाति, लिंग, वर्ण या राजनीतिक विचारधारा से परे रहककर सभी को अपना सदस्य बनाती हैं|

किसी आम व्यक्ति की तरह ही मेरी भी जिंदगी सामान्य ढंग से व्यतीत हो रही थी। अपनी दुनिया में उलझा था। हर दिन बस पुरानी दिनचर्या दोहराई जा रही थी। लेकिन उसके बाद एक ऐसा भी दिन आया, जब रोटरी को नजदीक से देखने और जानने का अवसर मिला। बात वर्ष 2001 की है। तब हमारे क्षेत्र में रोटरी क्लब रामगढ़ अपने कार्यों को लगातार आगे बढ़ा रही थी। इसके एक कार्यक्रम में शरीक होने मेरी जिंदगी का  टर्निंग पॉइंट बन गया। इसके एक-दो प्रोजेक्ट में शामिल होते ही मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा। यह वह पल था जब मेरे अंदर एक संकल्प घर कर गया कि मैं भी इस समाज को कुछ दे सकता हूँ, समाज के लिए कुछ कर सकता हूँ। फिर क्या था। जो सफर शुरू हुआ, वह आज 26 वर्षों से निरंतर जारी है। मुझे खुशी है कि अपने दायित्वों से कभी अरुचि उत्पन्न नहीं हुई। बल्कि हर चुनौती के साथ उससे भी बड़ी चुनौती को स्वीकार करने की शक्ति मिलती रही।

यदि आपके हृदय में समाज की सेवा करने की प्रबल इच्छा है, तो रोटरी क्लब इसका बड़ा जरिया बन सकता है। ऐसी सेवा, जहां सिर्फ धन से ही नहीं, श्रम से भी सेवा करने का अवसर मिलता है। यहां सेवा का अवसर पाकर आप गौरवान्वित महसूस करते हैं। यहां पर सीखे गए अनुभव आपको जिंदगी के हर मोड़ पर कामयाब बनाने के लिए मददगार साबित होते हैं। आपको यहां सिर्फ अपने आसपास ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को कुछ देने का अवसर मिलता है। खुद में हैप्पीनेस तो आता ही है, अपने इर्द गिर्द के लोगों को भी आप प्रभावित करते है ।

हमें वह दौर भी याद है, जब रोटरी में मेरे सफर की शुरुआत हुई थी। वह ऐसा दौर था, जब पूरी दुनिया में पोलियो लाखों बच्चो को प्रति वर्ष अपनी गिरफ्त में ले रही थी।रोटरी इंटरनेशनल की मुहिम थी पूरे विश्व मे पोलियो से लड़ने की, पोलियो के समूल खात्मे की। लेकिन इस अभियान में हर ओर चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थी। वजह थी समाज में जागरूकता की कमी। कुछ धर्म के लोग तो पोलियो के टीके को दूसरे अर्थ में लेकर इससे पूरी तरह दूरी बनाए हुए थे। लेकिन कहते हैं न कि बदलाव एक दिन में नहीं आ सकता है। इसके लिए आपको सतत संघर्ष करना होता है। क्लब के माध्यम से गांव और गली-मुहल्लों में घर-घर जाकर जनमानस को जागरूक किया गया। हमलोगों की मेहनत का परिणाम भी निकला। लोगों के मन में पोलियो दवा के संबंध में फैली भ्रांतियां धीरे-धीरे दूर होने लगी। यह देखकर हमलोगों ने और ताकत लगाकर प्रचार-प्रसार शुरू किया। रैलियां निकाली, मदरसे और स्कूल पहुंचे। वास्तविकता से समाज को जोड़ा। जिसके बाद धीरे-धीरे लोग हमें सहयोग करने लगे। पोलियो मुक्ति का अभियान हमारे लिए उत्सव के समान था। जिसमें हम सब जी-जान से जुटे रहते थे। आज पूरी दुनिया से पोलियो का खात्मा हो चुका है। इसका श्रेय रोटरी क्लब और उससे जुड़े पूरी दुनिया के रोटेरियन को जाता है। मुझे गर्व है कि मैं भी इस संघर्ष का हिस्सा रहा।
क्लब में इस सफर के दौरान कई ऊंचे पदों को भी संभालने की जिम्मेवारी मिली। ऊंचे पद के साथ, चुनौतियां बड़ी होती रही। लेकिन हर बार उस चुनौती को जीतने का हुनर भी सीखता रहा। सच कहें तो चुनौतियों को जीत पाना कभी संभव नहीं होता। लेकिन क्लब के हर सदस्य ने अपने साथ और विश्वास से इसे आसान बना दिया। ऐसी सहयोग की परिभाषा मैंने यहीं सीखी। यह जाना-समझा कि रोटरी के प्रमुख उद्देश्यों में से आपसी परिचय के उद्देश्य की पूर्ति होने पर यह अवसर निकलता है कि हम अपने क्षेत्र एवं परिवेश से बाहर आकर बगैर किसी झिझक के खुद के लिए और समाज के लिए नए अवसरों का सृजन करने में कामयाब होते हैं। हमारे और आपके अनुभव जब साझा होते हैं, तो कई ऐसी मिसालें लिखी जाती है, जो देखने-सुनने में असंभव लग सकती है। लेकिन सत्य यही है कि रोटरी का साथ हर नामुमकिन को मुमकिन बना देता है। प्रत्येक व्यवसाय और कार्य को सम्मान की निगाह से देखने की सीख भी इसी मंच पर मिलती है। यहां न तो जातिगत बंधन है, न रंग-वर्ण का भेद। यहां पर आदर्श के उच्च मापदंड स्थापित होते हैं। जो रोटरी के आदर्श वाक्य ‘सेवा स्व से ऊपर’ को स्थापित करता है। यहां हर रोटेरियन अपने निजी, व्यावसायिक और सामाजिक जीवन से कहीं आगे बढ़कर अपने आप में सेवा भावना को समाहित करता है। जिसकी छाया पूरी दुनिया के समाज पर पड़ती है। शांति और सद्भावना की ऐसी परिभाषा को गढ़ने का अवसर सिर्फ रोटरी की दुनिया में ही मिलता है।

मेरे रोटरी के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जो मेरे मन-मस्तिष्क को आज भी असीमित ऊर्जा से भर देती है। मुझे एहसास दिलाती है कि आप किसी के लिए कुछ करने में कितने कामयाब रहे हैं। आपके लिए आपका प्रयास अपनी नजर में आम हो सकता। लेकिन इस प्रयास से जो परिणाम निकला वह खास है। 

वर्ष 2005, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। ‘ऑपेरशन मुस्कान’ के तहत कटे होंठ या तालू वाले बच्चों के ऑपेरशन का क्लब ने बीड़ा उठाया था। इस अभियान का जितना सुंदर नाम था, उससे कहीं अधिक इसका वास्तविक महत्व था। इस अभियान की कामयाबी के लिए मैंने भी पूरी शक्ति लगाई। क्षेत्र में सघन जनसंपर्क और प्रचार के माध्यम से कटे होंठ और तालू वाले बच्चों के कई परिजनों तक पहुंचने में कामयाब रहा। लेकिन असल कामयाबी तब तक नहीं थी, जब तक इनके होंठों पर हकीकत में मुस्कान नहीं देख लेता। जमशेदपुर के निकट सिन्नी रेलवे स्टेशन के समीप क्लब द्वारा ऐसे बच्चों के ऑपेरशन के लिए कैम्प लगा था। मैं भी अपने क्षेत्र से 25 बच्चों को लेकर वहां पहुंचा था। सारी व्यवस्था निशुल्क थी। जब वहां पहुंचा तो देखा कि डॉ विजय भरत ऑपेरशन में मशगूल थे। बच्चों की संख्या ज्यादा थी, सो ऑपेरशन में वक़्त लगना था। 31 दिसंबर की बेहद सर्द रात थी वह। जब पूरी दुनिया जश्न में डूबी हुई थी।मैंने डॉ भरत से कहा कि आज की रात को कैसे सेलिब्रेट किया जाए। डॉ भरत का जो जवाब आया, वह आज भी मुझे दुनियावी सुख से कहीं आगे ले जाता है। उन्होंने कहा “आज हम बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौटा रहे हैं, इससे बढ़िया जश्न और क्या हो सकता है।” सच में डॉ भरत का यह जवाब सीधे दिल में उतर गया। अब तो बस इस बात का इन्तेजार था कि जितने बच्चे आये हैं, सभी के चेहरे इस ऑपरेशन के बाद खिल उठे। यही ख्वाहिश थी हमारी और इसी की दुआ करता रहा।

ऑपेरशन मुस्कान की हमारी कोशिश कितनी रंग लाई, इसे किसी पैमाने पर आंकना गलत होगा। यह महससू करने वाला अनुभव था। बच्चों और उनके परिजनों की बातें और उनकी दुवाएं बता गई कि रोटरी उनके लिए क्या कर गया है। हमारे क्षेत्र के पतरातू प्रखंड के तालाटांड़ गांव के उस बच्चे की मुस्कान आज भी जेहन में ताजा है। उसके होंठ और तालू दोनों कटे थे। इसलिए इस बच्चे के साथ ज्यादा चैलेंज था। ऑपेरशन मुस्कान के तहत पांच-छह महीने के अंदर उसके कई ऑपेरशन हुए। हर ऑपेरशन के साथ उस बच्चे की सुंदरता पहलेबसे अधिक लौटती जा रही थी। जिसे देखकर मन में बस इस बात की बेताबी थी कि कब यह बच्चा मेरे सामने अपनी पूरी सुंदरता के साथ खड़ा हो। आखिर वह दिन भी आ ही गया। बच्चे की सुंदरता देखकर अभी भी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि इसकी सुंदरता के पीछे आपका भी योगदान छिपा है। उसके पिता भी आये थे बच्चे के साथ। हाथ जोड़कर कहा “मैं आपका ऋण जीवन भर नहीं चुका सकता।” मैं अपनी कुर्सी से उठा और उनका हाथ पकड़ते हुए कहा “यह कोई ऋण नहीं, मेरे प्रयास की सफलता मात्र है।” मेरे ऐसा कहने के बावजूद उनकी भावनाएं थम नहीं रही थी। उन्होंने बड़े आदर के साथ कहा “चेहरे की विकृति के कारण शायद इसका विवाह भी नहीं हो पाता। अब जब भी इसकी शादी करूँगा मेरी जगह आपके सिर पर पिता की पगड़ी बंधेगी।” अपनी संतान के लिए एक पिता की भावनाएं समझी जा सकती है।

मानव जीवन ईश्वर का वरदान है। इस मर्म को समझने और दूसरों के लिए अच्छे कर्म करने में इसका इस्तेमाल होना चाहिए। लेकिन हम सब कहीं न कहीं इस आदर्श को स्थापित करने में पीछे रह जाते हैं। निजी स्वार्थों को सर्वोच्च मानकर जीवन के हर कदम को आगे बढ़ाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि मानव जीवन का वास्तविक कर्तव्य कहीं न कहीं पीछे छूट जाता है। यह क्लब हमें इस नैतिक जिम्मेवारी का बोध कराने में कहीं से पीछे नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो क्लब का जो उद्देश्य है, वह हमें सच में इंसान बनने की शिक्षा देता है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हर इंसान को सफलता की ख्वाहिश होती है। लेकिन हम क्षणिक प्रयास के बाद ही हार मान लेते हैं। सोने की तरह तपने का संकल्प रखे बगैर कामयाबी नहीं आती है। चाहे वह व्यवसाय का क्षेत्र हो या सेवा का क्षेत्र। हमें दीर्घकालिक प्रयास जारी रखने चाहिए। आपको कामयाबी मिलने पर आपकी इच्छाशक्ति कुछ और बड़ा करने के लिए आपको प्रेरणा से भर देगी। कामयाबी के साथ ही अपने हाथ उन जरूरतमंदों के लिए भी अवश्य आगे बढ़ाएं, ताकि वे भी आपका सहयोग पाकर आपकी ही तरह अपने जीवन के सपनों को साकार करने की तरफ कदम बढ़ा सकें। रोटरी में सेवा के गढ़े गये आयाम हमें ऐसा ही करने की प्रेरणा देते हैं।

वैश्विक महामारी कोरोना में रोटरी रांची के साथ काम करने का अवसर मिला। रांची क्लब के माध्यम से अभी तक लगभग 40 हजार लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है। यह टीकाकरण शिविर प्रतिदिन अनवरत जारी है। शिविर की सफलता पर स्थानीय सांसद, डीसी समेत अन्य जनप्रतिनिधियों की सराहना से हमें और नई ऊर्जा मिली है।

रोटरी के बारे में कहूँ, तो कोई संस्था ऐसे ही वट वृक्ष नहीं बनती। उसके पीछे उसके मूल उद्देश्य मायने रखते हैं। संस्था को समाज का आईना बनना पड़ता है। इसे सींचने के लिए बेशकीमती वक्त और सच्ची नीयत की जरूरत होती है। इस सोच को क्लब के संस्थापक पॉल हैरिस ने स्थापित किया। आज सौ साल से अधिक के लंबे सफर के बावजूद क्लब अपने मूल उद्देश्यों से न तो भटका है और न विमुख हुआ। क्लब के संस्थापक की सोच आज भी क्लब के माध्यम से अनवरत आगे बढ़ रही है, जिसपर कभी विराम नहीं लगेगा।