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स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम विद्रोह के महानायक तिलका मांझी की 238 वीं शहादत दिवस के मौके पर श्रद्धांजलि

तिलका मांझी के अधूरे सपनों को पूरा करने का लिया गया संकल्प

रामगढ़। स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम विद्रोह के महानायक तिलका मांझी की 238वीं शहादत दिवस के अवसर पर आदिवासी संघर्ष मोर्चा द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित किया गया है।

मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया,जयवीर हंसदा,मनेन्द्र मांझी, लालमोहन मुंडा और भाकपा माले रामगढ़ जिला सचिव-भुनेश्वर बेदिया, देवानंद गोप, अमल कुमार, दशरथ सिंह,उमेश गोप ने शहीद तिलका मांझी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित किए। एक मिनट का उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।नारों के साथ संकल्प लिया गया कि शहीद तिलका मांझी अमर रहे, स्वतंत्र संग्राम के प्रथम शहीद तिलका मांझी अमर रहे। शहीद तिलका मांझी के अधूरे सपने को पूरा करेंगे। जल, जंगल, जमीन की लड़ाई जारी है- जारी रहेगा, कंपनी राज नहीं चलेगी, कारपोरेट राज खत्म करो। आगे आदिवासी संघर्ष मोर्चा के देवकीनंदन बेदिया ने बताया कि तिलका मांझी ने अंग्रेजों के पक्षपोषक, जमींदार, महाजान, सूदखोरों को तिलका मांझी ने जबरदस्त प्रतिकार किया था। जो प्रतिकार स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम चिंगारी बनकर देश की आजादी तक चलता रहा। तिलका मांझी ने औपनिवेशिक सत्ता को चुनौती देते हुए आदर्श जनजातीय स्वशासन (स्वराज) व्यवस्था के नारे को बुलंद किया था। अंग्रेजों को अपनी धरती से मार भगाने का आह्वान किया था। तिलका मांझी का आंदोलन भागलपुर और संथाल परगना क्षेत्र था। 21 वर्षीय तिलका मांझी 1771 से 1784 तक के आंदोलन से अंग्रेजों का कंपनी राज थर्रा उठी थी।तब अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए हर चप्पा-चप्पा में खोज करते रहे।अंग्रेज के सेनापति पकड़ने में विफल रही। अंततः अंग्रेजों ने साजिश के तहत पकड़ने में सफल होती है। उन्हें भागलपुर कमिश्नरी में क्रूरतम यातनाएं देकर फांसी दी जाती है। तिलका मांझी ने स्वतंत्रता संग्राम के चेतना पैदा किए थे। विद्रोह के चिंगारी फैलाने का ऊर्जा तथा प्रेरणा दिये थे।आज देश के सामने तिलका मांझी के दिखाए रास्ते पर चल कर ही कंपनी राज की पुनरावृत्ति के खिलाफ आंदोलन को तेज करने की आवश्यकता है। इसके लिए आदिवासी संघर्ष मोर्चा संकल्प लेती है।