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शरद पूर्णिमा को खीर अर्पित करने से मिलती है ईश्वर कृपा: अमित मिश्रा

रिपोर्ट : मनोज कुमार

चरही(हजारीबाग)। यूं तो हर पूर्णिमा का हिंदू धर्म में महत्व होता है, लेकिन शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हजारीबाग कोयलांचल के तापिन साउथ कोलोनी निवासी कर्मकांडी एवं ज्योतिषाचार्य अमित मिश्रा के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस साल शरद पूर्णिमापर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इसे अमृत काल भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस दिन महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं।
पृथ्वी पर होता है भगवान विष्णु- मां लक्ष्मी का आगमन
पुराणों के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं। इतना ही नहीं इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं और वरदान देती हैं। कहते हैं कि जिस घर में अंधेरा या जो सोता रहता है, वहां माता लक्ष्मी दरवाजे से ही लौट जाती हैं। मां लक्ष्मी की कृपा से लोगों को कर्ज से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरी प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती है। कहते हैं कि इस रात को देखने के लिए समस्त देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी आते हैं।

क्यों किया जाता है शरद पूर्णिमा व्रत

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। एक बार बड़ी बेटी ने पूर्णिमा का विधिवत व्रत किया, लेकिन छोटी बेटी ने व्रत छोड़ दिया। जिससे छोटी लड़की के बच्चों की जन्म लेते ही मृत्यु हो जाती थी। एक बार साहूकार की बड़ी बेटी के पुण्य स्पर्श से छोटी लड़की का बालक जीवित हो गया। कहते हैं कि उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लग

खीर का लगाया जाता है भोग

शरद पूर्णिमा के दिन महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी भक्तों की सभी परेशानियां दूर करती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है।