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रांची के डोरंडा स्थित 56 सेट में कल मां दुर्गा की प्रतिमा का खुलेगा पट

मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव मौके पर रहेंगे मौजूद

रांची। रांची के डोरंडा स्थित छप्पन सेट में मां दुर्गा की प्रतिमा का पट कल शाम 7 बजे खोला जाएगा। इस मौके पर राज्य के वित्त तथा खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ0 रामेश्वर उरांव समेत अन्य कई गणमान्य अतिथि रहेंगे। कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन करते हुए यहां पूजा-अर्चना की जा रही है। इधर,रांची महानगर दुर्गा पूजा समिति के मुख्य संरक्षक आलोक कुमार दूबे के नेतृत्व में राजधानी रांची के पूजा पंडालों में कोरोना गाइडलाइन का पालर करवाया जा रहा है।
सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति राजकीय आवास गृह छप्पन सेट डोरंडा में आयोजित होने वाले दुर्गा पूजा पंडाल में सरकारी आवासीय परिसर में रहने वाले लोगों के अलावा सेवानिवृत्त परिवारों के लोग भी यहां आकर पूजा करते है। वर्ष 1967 में यहां सरकारी कर्मचारियों द्वारा दुर्गा पूजा प्रारंभ किया गया था और तब से परंपरा के अनुसार यहां हर वर्ष पूजा की जाती है।
इस वर्ष पूजा समिति के गठित कमेटी में संस्थापक कपिल देव सिंह है,मुख्य संरक्षक आलोक कुमार दूबे, वहीं समिति के अध्यक्ष गोपी दूबे, सचिव महेंद्र प्रसाद, सदस्य नीरज कुमार,दिलीप कुमार, विजय कुमार, दीपक ठाकुर, आयूष कुमार, सन्नी वर्णवाल, अभिषेक, राजीव छेत्री, अजीत राय, विवेक सिंह, रोहित कुमार समेत अन्य लोग पूजा आयोजन में लगे है।मीडिया प्रभारी अभिषेक कुमार,पूजा प्रभारी कमलेश झा बनाये गये हैं।
11 अक्टूबर को शाम में 7 बजे पट का अनावरण के साथ ही 108 महिलाओं द्वारा आरती की जाएगी तत्पश्चात हलवा भोग का वितरण किया जाएगा ।12 अक्टूकर को चना पूड़ी व हलवा का भोग लगेगा एवं बच्चों के लिए संध्या 4 बजे से पेंटिंग प्रतियोगिता की जाएगी , महाअष्टमी 13 अक्टूम्बर प्रात: 9 बजे से पुष्पांजलि,11 बजे से माता को खीर भोग का लगाया जाएगा ओर संध्या सात बजे महाआरती किया जाएगा और 14 अक्टूबर महानवमी को खिचड़ी भोग लगाया जाएगा और 15 अक्टूबर को विजयदशमी का हवन तथा 16 अक्टूबर को दोपहर दो बजे विसर्जन सह शोभा यात्रा बटन तालाब में होगा।
छप्पन सेट दुर्गा पूजा समिति के मुख्य संरक्षक आलोक दूबे ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा नेपाल हाऊस व अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के द्वारा 1967 में दुर्गा पूजा छोटे से स्वरूप में शुरु किया गया था जो आज एक भव्य रुप ले चुका है और जो लोग सेवानिवृत्त होकर यहाँ से चले भी गये हैं या उनका निधन भी हो गया तो भी परिवार के लोग अपने बच्चों को पंडाल दिखाने अवश्य लाते हैं। चाहे वह देश के किसी भी कोने में क्यों नहीं रहते हों।