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पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की 202 वी जयंती भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने संकल्प दिवस के रूप में मनाया

मेदिनीनगर : ज्ञान विज्ञान समिति पलामू के तत्वधान में पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की 202 वी जयंती के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन जिला कार्यालय में किया गया। जिसकी अध्यक्षता राज्य अध्यक्ष शिव शंकर प्रसाद एवं संचालन जिला सचिव अजय साहू के द्वारा किया गया। विचार गोष्ठी में विचार रखते हुए अभय कुमार वर्मा ने कहा कि विद्यासागर जी का जीवन का 18 वर्ष महत्वपूर्ण झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र का विकास के लिए जो उन्होंने दिया। वह एक मील का पत्थर है। वरिष्ठ पत्रकार गोकुल वसंत ने कहा कि आज इस अवसरवादी समाज में जब हमारा देश गुलाम था। उस समय पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने जो कार्य किया वह सोचा जा सकता है। कि उस समय कैसा स्थिति रहा होगा। जाति प्रथा उस समय चरम पर था। उन्होंने हिंदू विधवा पुनर्विवाह के लिए जो पहल किया वाह एक अनुकरणीय था। समाज ब्राह्मणवाद व्यवस्था में उलझा हुआ था ।कोई भी कार्य व्यवसाय को देखकर ही समाज में चलाया जाता है ।आज भी महिलाएं कर्मकांड को जिंदा रखे हुए हैं ।अगर कर्मकांड में विश्वास महिलाएं नहीं रखें तो हमारे समाज से कर्मकांड समाप्त हो जाएंगे।सरिता देवी ने कहा कि पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने जब एक 12 वर्ष की विधवा लड़की को देखें जिसको समाज में किस दृष्टि से देखा जाता है ।उसी समय उनके मन में विचार आया कि हमारे देश में कितने ऐसे विधवा होंगे। जिनकी ऐसी हालत है, और वहीं से उन्होंने यह प्रण किया कि इस व्यवस्था को समाज सुधार सकेंगे ।और उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का शादी एक विधवा से करवा कर इस परंपरा को तोड़ने का कार्य किया। विचार गोष्टी में शिव शंकर प्रसाद ने कहा कि

हमारी यह झारखण्ड की धरती केवल प्राकृतिक सौंदर्य और खनिज सम्पदायों से ही समृद्ध नहीं है। बल्कि तिलका माझी, सिधु-कान्हू, बिरसा भगवान तथा महाविद्रोह के वीर योद्धाओं की गाथा और समाज सुधारकों और दूसरे क्षेत्र के महान विभूतियों की अक्षय कीर्तियों से भी समृद्ध रही। ऐसे ही एक महान विभूति थे ।पण्डित ईश्वर चन्द्र बंद्योपाध्याय उर्फ करुणासिंधु विद्यासागर।  हमारे झारखण्ड के लिए गर्व और गौरव की बात है ।कि विद्यासागर जैसे महान हस्ती 1873 में तत्कालीन बिहार के संथाल परगना के ऐतिहासिक स्थान जामताड़ा से लगभग 20 किलोमीटर दूर इस आदिवासी और जंगलबहुल क्षेत्र उजाड़ तथा सुप्त बस्ती करमाटांड़ आए और अपने जीवन के 18 वर्ष से अधिक समय यहीं बिताये। करमाटांड़ के साथ ईश्वरचंद्र विद्यासागर के उस लंबे जुड़ाव तथा इस धरती पर उनके महान योगदान को यहाँ के या इस प्रदेश के जो लोग भूल चुके हैं ।या बहुत कम वाकिफ हैं। उनके लिए उस इतिहास को दोहराना आवश्यक है।
उनकी श्रेष्ठता रवीन्द्रनाथ की इस बात से साबित होती है कि जिस तरह कोयल कौवे के घोंसले में अंडे देता है, मानव-इतिहास के दाता ने उसी तरह गुप्त तरीके से बंगालियों को सच्चा ‘मानव’ बनाने का काम विद्यासागर को सौंपा है।”  यह ईश्वर चंद्र ही थे जिनके कारण उन्नीसवीं सदी के बंगालियों में सोच तथा चेतना में परिपक्वता आई थी ।और जिसने बंगाल में नवजागरण लाया।विद्यासागर सिर्फ नवजागरण के उद्गाता ही नहीं थे। उनका समूचा व्यक्तित्व तथा कर्मों की गाथा इतनी विस्तृत है। कि उनके आगमन के दो सौ बरस बाद भी उनकी प्रासंगिकता ज्यों-का-त्यों बनी हुई है।  अगर दो शब्दों में कहना पड़े तो उनका परिचय एक शिक्षक तथा समाज सुधारक मात्र है।  परंतु अगर इन्हीं दो शब्दों की व्यापकता का बयान करना पड़े तो एक पूरा-का-पूरा समंदर भी कम पड़ जायेगा।  वो हिंदू विधवा पुनर्विवाह के लिए सबसे प्रमुख प्रचारक थे।  गंभीर और कड़ा विरोध के बावजूद विधान परिषद में याचिका दायर की।और जिसे लॉर्ड डलहौजी ने व्यक्तिगत रूप से बिल को अंतिम रूप दिया। और हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 पारित हुआ। इस विचार गोष्ठी में सुनीता देवी, किरण देवी, कंचन कुमारी ,अभय सिंह यादव ,रविशंकर ,पुष्पा देवी, किरण देवी आदि लोगों ने भी अपने विचार रखे।