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श्री दिगंबर जैन समाज का 10 लक्षण महापर्व

अनंत चतुर्दशी के मौके विशेष जलाभिषेक और शांतिधारा का आयोजन

रामगढ़। श्री दिगम्बर जैन मंदिर एवेम श्री पारसनाथ जिनालय मे दसलक्षण पर्व के 10वे दीन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पूजा किया गया।आज अनंत चतुर्दशी के शुभ अवसर पे दोपहर मे श्रीजी का अभिषेक और शांतिधारा किया गया। वही 18 सितंबर को जैन मंदिर रामगढ़ की प्रथम अभिषेक की डाक  सरोज पांड्या द्वारा ली गई थी।

प्रथम अभिषेक संतोष अजमेरा एवं रांची रोड मैं श्रीमती इन्दरमणी देवी चूड़ीवाल द्वारा किया गया। वही 19 सितंबर को शांतिधारा श्रीमती कवरी देवी बगड़ा और रांची रोड मैं श्रीमती इन्दरमणी देवी चूड़ीवाल द्वारा किया गया।निर्वाण लड्डू चढ़ाने का सौभग्य रामगढ़ मैं विनोद जैन एवं रांची रोड में बिजेंद्र कुमार जैन को मिला।
अनंत चतुर्दशी के शुभ अवसर पर दोपहर में श्रीजी का जलाभिषेक एवेम शांतिधारा किया गया।प्रथम अभिषेक विद्याप्रकाश पदमचंद छाबड़ा, शांतिधारा सुशील चूड़ीवाल द्वारा किया गया।पांच इन्द्र बनने का सौभाग्य महावीर गंगवाल, देवेंद्र गंगवाल, इशांत पाटनी,सुभाष सेठी, श्याम सुन्दर जैन को मिला।

उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की हुई पूजा

कामसेवन का मन से, वचन से तथा शरीर से परित्याग करके अपने आत्मा में रमना ब्रह्मचर्य है।संसार में समस्त वासनाओं में तीव्र और दुद्र्वर्ष कामवासना है। इसी कारण अन्य इन्द्रियों का दमन करना तो बहुत सरल है किन्तु कामवासना की साधन भूत काम इन्द्रिय का वश में करना बहुत कठिन है। छोटे-छोटे जीव जन्तुओं से लेकर बड़े से बड़े जीव तक में विषयवासना स्वाभाविक (वैभाविक) रूप से पाई गई है। सिद्धांत ग्रन्थों ने भी मैथुन स्ंज्ञा एकेन्द्रिय जीवों में भी प्रतिपादन की है।

कामातुर जीव का मन अपने वश में नहीं रहता। उसकी विवेकशक्ति नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। पशु तो कामवासना के शिकार होकर माता, बहिन, पुत्री, स्त्री आदि का भेदभाव करते ही नहीं। सभी को समान समझ कर सबसे अपनी कामवासना तृप्त करते रहते हैं। इसी कारण उन्हें पशु (समान पश्यति इति पशु) कहते हैं। परंतु कामातुर मनुष्य भी कभी कभी पशु सा बन जाता है। कवि ने कहा है-

दिवा पश्यति नीलूको मनुजो रात्रि न पश्यति।अपूर्वः कोपि कामान्धो दिवारात्रं न पश्यति।।अर्थात्- दिन में उल्लू को दिखाई नहीं देता और मनुष्य को रात में नहीं दिखाई देता। परंतु कामान्ध पुरुष न रात में कुछ देखता है न दिन में। उसके नेत्र कामवासना के कर्तव्य अकर्तव्य को कुछ नहीं देख पाते।