महापर्व के 9 वे दिन उत्तम अकिंचन धर्म की हुई पूजा
रामगढ़। शहर के मेन रोड में स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर एवं रांची रोड में स्थित श्री पारसनाथ मंदिर में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी दश लक्षण महापर्व मनाया जा रहा है। महापर्व के नौवें दिन उत्तम अंकिचन धर्म की पूजा हुई। जिसमें बताया गया कि आत्मा के अपने गुणों के सिवाय जगत में अपनी अन्य कोई भी वस्तु नहीं है इस दृष्टि से आत्मा अकिंचन है। अकिंचन रूप आत्मा-परिणति को आकिंचन करते हैं।
जीव संसार में मोहवश जगत के सब जड़ चेतन पदार्थों को अपनाता है, किसी के पिता, माता, भाई, बहिन, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र आदि के विविध सम्बंध जोड़कर ममता करता है। मकान, दूकान, सोना, चाँदी, गाय, भैंस, घोड़ा, वस्त्र, बर्तन आदि वस्तुओं से प्रेम जोड़ता है। शरीर को तो अपनी वस्तु समझता ही है। इसी मोह ममता के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति इस मोही आत्मा की प्रिय वस्तु की सहायता करता है तो उसको अच्छा समझता है, उसे अपना हित मानता है। और जो इसकी प्रिय वस्तुओं को लेशमात्र भी हानि पहुँचाता है उसको अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है, लड़ता है, झगड़ता है इस तरह संसार का सारा झगड़ा संसार के अन्य पदार्थों को अपना मानने के कारण चल रहा है।
अन्य पदार्थों की इसी ममता को परिग्रह कहते हैं। यदि भरत चक्रवर्ती के समान सुंदर लुभावने पदार्थों के रहते हुए भी उन पदार्थों से मोह ममता न हो, उनको अपना समझे जल में कमल की तरह से अपने आपको सबसे पृथक् समझे। यानी-संसार उनके चारों ओर हो तो हो, किन्तु उसके हृदय में अपनी आत्मा के सिवाय संसार की कोई जड़ चेतन वस्तु न हो, तो न उसके अन्तरंग में परिग्रह है न बहिरंग में कोई परिग्रह है।तथा यदि मन में पदार्थों के साथ मोह
ममता है किन्तु नग्न दिगम्बर साधु तो वह परिग्रही है। उस साधु की अपेक्षा भरत सरीखा गृहस्थ श्रेष्ठ है। इसी भाव को श्री समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में यों प्रकट किया है। वही श्री दिगंबर जैन मंदिर रामगढ़ में प्रथम अभिषेक डॉ शरद जैन एवं रांची रोड में विकास पाटनी के द्वारा किया गया। वही शांति धारा रामगढ़ में डॉ शरद जैन एवं रांची रोड में विकास पाटनी के द्वारा किया गया। वही श्री दिगंबर जैन समाज के मीडिया प्रभारी राहुल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि दसलक्षण पर्व के 10वे दिन उत्तम ब्रह्मचर्य का पूजा किया जाएगा।