करम पर्व भाई-बहन के आपसी सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है: सुधीर मंगलेश
रामगढ़।जिला के दुलमी प्रखंड क्षेत्र के कांग्रेस नेता सुधीर मंगलेश ने प्रखंड क्षेत्र में करम अखडों घुमकर करम परब की बधाई दिया।साथ ही कहा कि करम परब भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व का इंतजार कुंवारी युवतियां बेसब्री से करती हैं। पूरे प्रदेश इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व तीन दिनों तक चलता है, जिसमें पहले दिन महिलाएं व कुंवारी युवतियां संयत करती हैं। दूसरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है। इसी दिन मुख्य पूजा आयोजित होती है। शाम को आंगन में करम पौधे की डाली गाड़कर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है। इस दौरान महिलाएं करमडाली के चारों ओर घूम-घूम कर गीत गाती हैं। भाई खीरा लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो तो बहनें जबाव देती हैं भाईयों के मंगलकामना के लिए। बाद में भाई खीरे से मारता है, जिसके बाद महिलाएं व युवतियां फलाहार करती हैं। अगले दिन सुबह में करम की डाल को पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है। इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में पर्व मनाती हैं इस पर्व को मनाने की पीछे पौराणिक कथा कर्मा और धर्मा नामक दो भाईयों से जुड़ी है। कहा जाता है कि दोनों भाईयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया था। दोनों भाई काफी गरीब थे। उनकी बहन बचपन से ही भगवान से उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती थी। बहन द्वारा किए गए तप के कारण ही दोनों भाईयों के घर में सुख-समृद्धि आई थी। इस एहसान का बदला चुकाने के लिए दोनों भाईयों ने दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी। इस पर्व की परंपरा यहीं से मनाने की शुरुआत हुई थी। इस त्योहार से जुड़ी दोनों भाईयों के संबंध में एक और कहानी है। जिसके मुताबिक एक बार कर्मा परदेस गया और वहीं जाकर व्यापार में रम गया। बहुत दिनों बाद जब वह घर लौटा तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई धर्मा करमडाली की पूजा में लीन है। धर्मा ने अपने बड़े भाई के लौट आने पर कोई खुशी जाहिर नहीं की। यहां तक कि वह पूजा में ही तल्लीन रहा। इससे कर्मा क्रोधित हो गया और करमडाली, धूप, नैवेद्य आदि को फेंक दिया और भाई के साथ झगड़ने लगा। मगर धर्मा सबकुछ चुपचाप सहता रहा। वक्त बीतता गया और कर्मा को देवता का कोपभाजन बनना पड़ा, उसकी सारी सुख-समृद्धि खत्म हो गई। आखिरकार धर्मा को दया आ गई और उसने अपनी बहन के साथ देवता से प्रार्थना किया कि उनके भाई को क्षमा कर दिया जाए। दोनों की प्रार्थना ईश्वर ने सुन ली और एक रात कर्मा को देवता ने स्वप्न देकर करमडाली की पूजा करने को कहा। कर्मा ने ठीक वैसा ही किया और उसकी सारी सुख-समृद्धि वापस आ गई। हालांकि कर्मा-धर्मा से जुड़ी कई और कहानियां भी प्रचलित हैं। आधुनिकता के तमाम तामझाम के बावजूद इस पर्व की गरिमा आज भी बरकरार है। मौके पर समाजसेवी सुसमीता देवी प्रदीप महतो रविकांत महतो विरेन्द्र कुमार कैलाश महतो सिकेन्दर कुमार ताहिर अंसारी दुधेशवर महतो अरविंद कुमार उत्तम कुमार बंटी कुमार देवेकी कुमार प्रमोद आर्या बबलू कुमार कैलाश महतो जतन कुमार रंजीत कुमार आदि मौजूद थे।