रांची l झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष सह डुमरी विधायक टाइगर जयराम महतो ने कुरमाली और कुडमाली भाषा को लेकर विधानसभा में अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि अंगीकृत बिहार राज्य भाषा संशोधन अधिनियम 2011 के तहत संथाली, बांग्ला, मुंडारी, हो, खड़िया, कुडुक, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरनिया तथा उड़िया को उर्दू के अतिरिक्त द्वितीय राजभाषा के रूप में अधिसूचित किया गया था। इस अधिनियम में कुरमाली भाषा का नाम बदलकर कुडमाली करने की मांग की गई है। विधायक ने कहा कि इसमें “र” के स्थान पर “ड” का प्रयोग किया जाए, क्योंकि यह भाषा के स्वाभाविक उच्चारण के अनुरूप होगा।
विधायक जयराम महतो ने सुझाव दिया कि इस बदलाव से अतिरिक्त खर्च या राजस्व का नुकसान नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि साहित्यिक दृष्टिकोण से “ड” का महत्वपूर्ण स्थान है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि काडा,भेड़ा,माडा, गोड, मुड़ जैसे शब्दों का उच्चारण केवल कुडमाली साहित्य में ही संभव है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार चाहे तो सर्वे करवा सकती हैlजिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि जहां कुडमाली भाषा बोली जाती हैl वहां लोग इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत, औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले यूपी और बिहार के लोग इन शब्दों को कारा, भेरा, पीरा के रूप में उच्चारित करेंगे।
महतो ने कहा कि झारखंड का निर्माण भाषा और हासा (संस्कृति) के आधार पर हुआ था, इसलिए भाषा को शुद्ध रूप में मान्यता देना आवश्यक है। उन्होंने उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा किए जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी “आर” की जगह “डी” का प्रयोग किया गया, क्योंकि यह उनकी संस्कृति और परंपरा के अनुरूप था। इसी तरह, कुरमाली भाषा का नाम बदलकर कुडमाली किया जाना चाहिए।
विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री ने इस पर संशोधन का आश्वासन दिया है। इस संबंध में जानकारी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा, रामगढ़ इकाई के जिला मीडिया प्रभारी रमेश कुमार महतो ने दी।