रामगढl शहर के मेन रोड में स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर और रांची रोड स्तिथ श्री पारसनाथ जिनालय मे दसलक्षण पर्व के 10 वे दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पूजा किया गयाl
भगवान वास्पुज्य स्वामी का निर्वाण लड्डू चढ़ाया गयाlजलाभिषेक रामगढ़ शांतिलाल, राकेश पांड्या ,राजेंद्र चूड़ीवाल,राजेश चूड़ीवाल,इंद्रमणि देवी चूड़िवाल, जीवनमल पाटनी,जंबू पाटनी,प्रकाश अजमेरा, सैलेष अजमेरा,राजीव जैन,रांची रोड सुभाष पाटनी,वैभव पाटनी,शांतिधारा रामगढ़ श्रीमति इंद्रमणि देवी चूड़िवाल,योगेश सेठी,राजेंद्र चूड़ीवाल,नागरमल गंगवाल,रांची रोड संतोष बज, वास्पुज्य स्वामी जी को निर्वाण लड्डू चढ़ाने का सौभाग्य, रामगढ़ हीरालाल पाटनी राजेंद्र पाटनी,रांची रोड उषा अजमेरा,मयंक अजमेराl
पंडित रमेश जैन शास्त्री,राजेश जैन,पंकज जैन ने बताया कामसेवन का मन से, वचन से तथा शरीर से परित्याग करके अपने आत्मा में रमना ब्रह्मचर्य है।संसार में समस्त वासनाओं में तीव्र और दुद्र्वर्ष कामवासना है। इसी कारण अन्य इन्द्रियों का दमन करना तो बहुत सरल है किन्तु कामवासना की साधन भूत काम इन्द्रिय का वश में करना बहुत कठिन है। छोटे-छोटे जीव जन्तुओं से लेकर बड़े से बड़े जीव तक में विषयवासना स्वाभाविक (वैभाविक) रूप से पाई गई है। सिद्धांत ग्रन्थों ने भी मैथुन स्ंज्ञा एकेन्द्रिय जीवों में भी प्रतिपादन की है।
कामातुर जीव का मन अपने वश में नहीं रहता। उसकी विवेकशक्ति नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। पशु तो कामवासना के शिकार होकर माता, बहिन, पुत्री, स्त्री आदि का भेदभाव करते ही नहीं। सभी को समान समझ कर सबसे अपनी कामवासना तृप्त करते रहते हैं। इसी कारण उन्हें पशु (समान पश्यति इति पशु) कहते हैं। परंतु कामातुर मनुष्य भी कभी कभी पशु सा बन जाता हैl इस मौके पर अरविंद सेठी,नरेंद्र छाबड़ा, जंबू जैन,देवेंद्र गंगवाल सहित अन्य लोग मौजूद थे l