शहर के गोलपार के ग्रीन गोला की सरकारी जमीन की जांच करने पहुंचे उपायुक्त
जमीन पर व्यक्ति विशेष के दावे को लेकर दस्तावेज खंगाल रहे अधिकारी
रामगढ़ शहर के कई कीमती जमीनों पर भूमि माफियाओं की टेढ़ी नजर
रामगढ़। झारखंड के बड़े शहरों में पिछले 2-3 वर्षों से सरकारी भूमि के कब्जे को लेकर बड़े पैमाने पर बात सामने आ रही हैl राजधानी रांची सहित आसपास के शहरी क्षेत्र में राजनीतिक दबाव के कारण भूमि माफिया अधिकारियों पर दबाव बनाकर सरकारी भूमि को कब्जा कर रहे हैंl ऐसा नहीं की राजधानी रांची से सटे रामगढ़ जिले में भूमि माफियाओं का आतंक नहीं हैl यहां भी भूमि माफिया राजनीतिक आकाओ के कारण अधिकारियों पर दबाव बनाकर भूमि कब्जा करने का खेल खेल रहे हैंl
शहर के कई कीमती जमीनों पर भूमि माफियाओं की टेढ़ी नजर पड़ी हुई हैl रामगढ़ शहर के ग्रीन गोला की सरकारी जमीन को लेकर जिले के आला अधिकारी तक हलकान हो गए हैं। एक व्यक्ति विशेष के द्वारा इस सरकारी जमीन पर दावा पेश किया गया। उसके द्वारा उस जमीन पर दो बार जबरन दीवार खड़ी करने की भी कोशिश की गई। इसके बाद भी रामगढ़ जिला प्रशासन सरकारी भूमि को पहचान दिलाने में सक्षम नहीं दिख रहा। शुक्रवार की शाम डीसी चंदन कुमार खुद वहां पहुंचे और उन्होंने गोलपार की उस जमीन का मुआयना किया। इस दौरान उन्होंने शहीद भगत सिंह पार्क और वहां बने अन्य सरकारी भवनों का बारीकी से निरीक्षण किया। जिस भवन में मतदान केंद्र बनाया जाता है उसपर भी डीसी ने नजर डाली। इसके बाद उन्होंने उसे रास्ते पर चर्चा की जिसको भू माफियाओं के द्वारा दो बार जबरन बंद करने का प्रयास किया गया था। इस दौरान डीसी के साथ रामगढ़ अंचल अधिकारी सत्येंद्र पासवान और आंचल के अन्य कर्मचारी मौजूद थे।
छावनी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष ने सरकारी जमीन के पेश किए सबूत
डीसी चंदन कुमार जब गोलपार्क की उस जमीन का मुआयना कर रहे थे, उस वक्त छावनी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सरदार अनमोल सिंह भी वहां मौजूद थे। उन्होंने डीसी को उन सारे सबूतों के बारे में बताया जो यह बयां कर रहे थे कि वह जमीन सरकारी है। उन्होंने बताया कि कई वर्षों पहले वहां अनाज का भंडारण होता था। उसके बाद वहां सरकारी विद्यालय का संचालन भी होता था। इसके अलावा सांसद मद से वहां दो भवनों का निर्माण हुआ है। साथ ही इस सरकारी जमीन पर अस्पताल भवन भी बनाया गया है। इन सब के बावजूद उस सरकारी जमीन के फर्जी दस्तावेज भू माफियाओं के द्वारा तैयार किए गए हैं। उसी के आधार पर उस जमीन पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश की जा रही है।
जमीन है सरकारी, पर कई हैं दावेदार, कौन है गड्ढा खान?
ग्रीन गोला के सरकारी जमीन 75 वर्षों पूर्व पीडब्ल्यूडी के द्वारा अधिग्रहित कर ली गई थी। इसके दस्तावेज छावनी परिषद के कार्यालय में भी मौजूद हैं। गोल पार्क में बना सरकारी कुआं इस बात का गवाह है कि प्लॉट नंबर 290 का एक बड़ा रकबा पीडब्ल्यूडी ने अधिग्रहित किया था। वहां बाकायदा नक्शे में पीडब्ल्यूडी की पूरी जमीन को अंकित भी किया गया है। इस जमीन पर गोलपार्क पुरनी मंडप के रहने वाले वजीउद्दीन खान उर्फ गड्ढा खान ने भी अपना दावा पेश किया है। उनका कहना है कि लगभग डेढ़ एकड़ जमीन उनके पूर्वजों के नाम पर यहां अंकित है। उसके पूरे दस्तावेज मौजूद हैं। इसके बाद इस जमीन पर तरन्नुम जहां अपना दावा पेश करती है। उनका कहना है कि वर्ष 2015 में जैन परिवार के वंशजों ने उन्हें वह जमीन बाकायदा रजिस्ट्री कर दी है। लेकिन जिस परिवार वालों ने उन्हें रजिस्ट्री किया है उसी के पूर्वजों ने छावनी परिषद को जमीन दान करते वक्त यह बताया था कि वह जमीन पीडब्ल्यूडी की है।
मुझे नहीं चाहिए 27 डिसिमल, 10 भी मिल जाए तो काफी है
डीसी चंदन कुमार जब ग्रीन गोला की सरकारी जमीन पर जांच करने पहुंचे तो तरन्नुम जहां उनसे उस लहजे में बात कर रही थी, जैसे उनके मंसूबे पूरे हो गए हो। वर्ष 2015 में दो रजिस्ट्री डीड से उन्होंने 27 डिसमिल जमीन की खरीद की है। लेकिन तरन्नुम जहां ने डीसी को यह बताया कि मुझे 27 डिसमिल जमीन की भी जरूरत नहीं है। अगर मुझे वहां 10 डिसमिल जमीन भी कब्जा हो जाता है तो वह उनके लिए काफी होगा। उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि भू माफिया उस खाली बड़ी जमीन पर अपना कब्जा चाहते हैं। हर तरफ रास्ता और भावनो की जमीन को दान में देने वाले ऐसे खरीददार शायद समाज ने पहली बार देखा हो?
कहां गायब हो गए जमीन के विक्रेता
ग्रीन गोला की सरकारी जमीन जैन परिवार के कुछ वंशजों के द्वारा बेची गई है। जमीन पर दावा पेश करने वाली तरन्नुम जहां जिला प्रशासन से अपनी जमीन पर कब्जे के लिए लड़ाई लड़ रही है। लेकिन जमीन बेचने वाले विक्रेता कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं। कहां गया जैन परिवार और उनका वंशज। जिन लोगों ने तरन्नुम जहां और उनके परिवार वालों को यह जमीन बची है वे लोग ना तो सरकारी दफ्तरों में नजर आते हैं और ना ही उन लोगों ने कहीं भी कोई आवेदन दिया है। जमीन रजिस्ट्री करने के बाद तरन्नुम जहां हर तरफ दौड़ लगा रही हैं। लेकिन उन्हें वह विवादित जमीन कैसे हासिल हुई और किन लोगों ने उन्हें बची उन्हें किसी के सामने भी लेकर नहीं आ रही हैं। हो सकता है कि तरन्नुम जहां के साथ भी जैन परिवार के वंशजों ने धोखाधड़ी कर दी हो? लेकिन इसके प्रमाण तभी मिल सकते हैं जब जैन परिवार के वंशज सरकारी अधिकारियों के सामने उपस्थित होंगे।