रामगढ़। शहर में सावित्रीबाई फुले का 193वीं जयंती दिवस रामगढ़ में
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला ससोसिएशन (ऐपवा) रामगढ़ जिला सचिव नीता बेदिया, उपाध्यक्ष कांति देवी, सदस्यों में झूमा घोषाल,पंचमी देवी, भावना देवी,मंजू देवी,मीला देवी,मगनी देवी,चरकी देवी, संजोती देवी, शांति देवी,पुरनी देवी,सतिया देवी,रिझनी देवी,उपासी देवी अन्य महिलाएं शामिल होकर मनाई।
सर्वप्रथम उपस्थित सभी महिलाओं ने सावित्रीबाई फुले के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पाजंलि अर्पित की गई और नारेबाजी की गई।
लड़कियों एवं महिलाओं के प्रति शिक्षा का अलख जगाने वाली सावित्रीबाई फुले अमर रहे।फासीवादी मिटाओ, लोकतंत्र बचाओ,देश बचाओl क्रांतिकारी शहीदों के सपनों का भारत बनाओ।
स्वभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है।देश की प्रथम महिला शिक्षका,नारी मुक्ति के प्रणेता महान समाज सेविका, क्रांति की ज्योत जलाने वाला सावित्री बाई फुले की जयंती पर उन्हें कोटी कोटी नमन करते हैं।
नीता बेदिया द्वारा सावित्रीबाई फुले की जीवनी का पाठ किया गयाlदेश में महिला शिक्षा और आधुनिकता की अलख जगाने वाली सावित्री बाई फुले की आज जयंती हैl 3 जनवरी 1831 को पुणे से 50 किलोमीटर दूर नईगांव में उनका जन्म हुआ थl 9 वर्ष की उम्र में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से उनका विवाह कर दिया गयाlशिक्षा के प्रति सीखने की सावित्री बाई की लगन देख कर उनके पति ज्योति राव फुले ने उन्हें पढ़ाना शुरू कियाl
खुद पढ़ते हुए सावित्री बाई को शिक्षा का महत्व भी समझ में आया और 1847 में उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल का निर्माण कर पढ़ाना शुरू कियाlशुरू में 8-9 लड़कियां ही उनके स्कूल में आई पर साल भर होते-होते यह संख्या बढ़ कर 40-45 हो गयीl हालांकि लड़कियों को शिक्षा की यह मुहिम आसान नहीं थीl सोचिए तो धर्म कैसी खतरनाक है,जो कैसी-कैसी चीजों से खतरे में आ जाता हैlसावित्री बाई द्वारा धर्म की निर्धारित चौहद्दी के बाहर शिक्षा को ले जाने की कोशिशों को धर्म के विरुद्ध और धर्म के लिए खतरा करार दियाl
नतीजा सावित्री बाई का प्रचंड विरोध हुआl वे स्कूल जाती तो रास्ते में उन पर पत्थर,गोबर आदि गंदगी फेंकी जाती. लड़कियों और दबे कुचलों को शिक्षा देने की फुले दंपति की कोशिशों के विरोध ने ज्योतिबा के पिता को तक भयभीत कर दियाlफलतः दोनों पति-पत्नी को 1849 में घर से निकाल दिया गयाlलेकिन इतने विरोध के बावजूद शिक्षा को लेकर इस दंपति के कदम डगमगाये नहींl
महिला शिक्षा और समाज में उपेक्षित,वंचित तबकों के लिए जीवन पर्यंत प्रतिबद्ध रहने वाली सावित्रीबाई फुले की मृत्यु भी समाज सेवा करते हुएl 1897 में प्लेग के मरीजों की सेवा करते हुए,वे स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गयी और 10 मार्च 1897 को इस दुनिया से रुखसत हो गयीlभारत में पहली महिला शिक्षक और पहली महिला प्रधान अध्यापक तथा महिलाओं,वंचित उपेक्षितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहीl
आज के दौर में महिलाओं पर घरेलू हिसा,अत्याचार,रेप छेड़खानी तेजी से बढ़ रहा है। महिलाओं को आज भी समाज और सरकार ने अधिकारों से वंचित किया हैl शैक्षणिक,राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक बराबरी के के लिए सावित्रीबाई फुले से प्रेणना लेते हुए लड़ाई तेज करने का संकल्प लेना चाहिए।